अजीब सी है यह दुनिया,
कहते थे मुझे “तू है आने वाला कल”,
पर मैं तो कल ही ना देख सका |
घुटन सी हो रही है इस लकड़ी के डब्बे के उनदर,
अम्मी अब्बू का दिल साथ लेकर,
नाजाने क्यों गोलियाँ उतार गया मेरे अन्दर,
मैने पूछना ज़रूरी नहीं समझा |
काले जूते, मुह ढका हुआ नाजाने क्यों,
खून में इतनी आग थी तो खुलकर वार करता,
डरता है शायद अपने आप को मरने वाले की आखों में देखने से,
मैने समझना ज़रूरी नहीं समझा |
अम्मी तुमने रोका क्यों नहीं सुबह,
अब्बू के स्कूटर का टायर कहीं फसा क्यूं नहीं,
कोई एक बहाने से शायद ज़िंदा होता आज,
मौत ने रुकना ज़रूरी नहीं समझा |
उसका भी तो बेटा होगा,
गोलियों से लिखता होगा,
खून की सियाही में,
हम जैसो की तकदीर पिरोता होगा |
अम्मी तुम फिकर मत करो ना,
यह जन्नत बहुत ही हसीन है,
अल्लाह को परेशान मत करो ना,
देख रहे है वो भी अपनी रची दुनिया,
पर अभी तबाह करना ज़रूरी नहीं समझा |